दून में वार्ड बॉय गायब: मरीज के परिजन खुद वार्ड ब्वाय ,कैमरे कि नजर में हकीकत!

राजकीय दून मेडिकल कालेज अस्पताल को सुधरने में लगेगे 10 साल,अस्पताल प्रबंधन को फुर्सत नहीं?!

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उत्तराखण्डः 22 सितंबर 2024, राजधानी /देहरादून स्थित  सूबे के सबसे बड़े राजकीय दून मेडिकल कालेज अस्पताल देहरादून को सुधरने में करीब दस साल लगेगें।  वही जिसमें  दून अस्पताल में अव्यवस्था का आलम है। देहरादून जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था किस कदर बदहाल है इसके नमूने आये दिन समाचारों की सुर्खियां बनते रहते हैं। वही इस  दून मेडिेज कालेज अस्पताल में आए दिन बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की तस्वीर सामने आती रहती है। जिससे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही दून अस्पताल में व्यवस्थओं को नाम मिलने पर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है ।

दून अस्पताल की इमरजेंसी में करीब 6 वार्ड ब्वाय ड्यूटी पर  है। यहां देखने में आया है कि वार्ड ब्वाय का काम मरीज के परिजन कर रहे हैं। इन दिनों ऐसा ही कुछ नजारा यहां देखने को मिल रहा है। गंभीर रूप से बीमार या घायल मरीज व उसके बेहाल परिजन जब दून अस्पताल की इमरजेंसी में पहुंचते हैं तो डयूटी पर तैनात वार्ड ब्वाय का यह कर्तव्य है कि वह मरीज को स्ट्रेचर या व्हीलचेयर पर ले जाकर डॉक्टर या संबंधित वार्ड तक पहुंचाए। वही जिसमें  दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से गंभीर रूप से घायल या बीमार मरीज को लेकर उसके परिजन दून अस्पताल इस विश्वास के साथ पहुंचते हैं कि यहां उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी।

लेकिन इस दून मेडिकल अस्पताल की इमरजेंसी ओटी बिल्डींग में पहुंचते ही उनकी परेशानी शुरू हो जाती है। बीमार मरीज को लेकर वे वैसे भी पहले से ही काफी परेशान रहते हैं। बाकी की कसर डयूटी पर तैनात वार्ड ब्वाय पूरी कर देते हैं। होता ये है कि मरीज को लेकर तत्काल डॉक्टर के पास जाना होता है या डॉक्टर द्वारा उसे वार्ड में भर्ती करने कहा जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज के परिजनों को यह पता नहीं होता है कि डॉक्टर कहां बैठे हैं या उक्त वार्ड कहां हैं। ऐसे में उन्हें काफी परेशानी होती है। जानकारी के अभाव में जैसे-तैसे व्हीलचेयर या स्ट्रेचर पर लिटाकर वे बीमार को सही जगह पहुंचा पाते हैं। अस्पताल में आम बात है। मरीजों व उनके परिजनों को होने वाली परेशानियों के बावजूद व्यवस्था सुधारने अस्पताल प्रबंधन को फुर्सत नहीं है। इस कारण यहां भर्ती होने वाले मरीजों व उनके परिजनों को कई बार काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

  इस दौरान  दून अस्पताल की इमरजेंसी में से कुछ मरीज व उनके परिजन मयूस होकर जाते है।  क्योंकि यह समय पर व्यवस्थओं को नाम मिलने पर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है । वही उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग के वादे और दावों की जमीनी हकीकत ठीक उलट है। सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन ये सच है कि प्रदेश की राजधानी में ऐसे कई अस्पताल हैं, जहां एक भी वार्ड ब्वाय डियूटी पर नहीं दिखता है। यह पर वार्ड ब्वाय या तो कागजो में रहते है या फिर वीआईपी व नेतागण के आने पर सामने आ जाते है।

आप इससे अंदाजा लगाइए कि जब सूबे के  दून  अस्पताल की इमरजेंसी ओटी बिल्डींग में जहां एक भी वार्ड बॉय सामने नही दिखता,,वहां पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधा के क्या हालात होंगे। जरा सोचिए!   यह सब तब है जब उत्तराखण्ड स्वास्थ्य मंत्री डॉ0 धनसिंह रावत किसी में कार्यक्रम में स्वास्थ्य सुविधाओं की दर्जनों उपलब्धियां गिनाने में देरी नहीं करते, साथ ही स्वास्थ्य विभाग भी अपनी उपलब्धियों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त सामने रख देता है। 

वही इस दून अस्पताल  इमरजेंसी में वार्ड बॉय ड्यूटी से गायब, परिजन खुद स्ट्रेचर खींच रहे । तीमारदारों को खींचना पड़ता है स्ट्रेचर,जिसमें के परिजानो की परेशानी ओर बढ़ जाती है। यहां  इमरजेंसी ओटी बिल्डींग में  में आ रहे मरीजों के परिजनों को खुद ही स्ट्रेचर और व्हीलचेयर खींचनी पड़ती है। इमरजेंसी में वार्ड ब्वाय के ना होने से यह स्थिति बनी हुई है। जबकिवार्ड आया, वार्ड ब्वॉय और वार्ड अटेंडेंट का काम इमरजेंसी में मरीजों को स्ट्रेचर से वार्ड तक ले जाना, देखभाल करना रहता है। वहीं,इस दून अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उनके पास पर्याप्त स्टाफ व सुविधाए है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आपातकाल के दौरान ही इन सेवाओं की जरूरत पड़ती है। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि इन सेवाओं के प्रति स्‍वास्‍थ्‍य कर्मी लापरवाह होते हैं और व्यवस्था में बड़ी खामियां देखी जाती है।अब भी लगातार स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के मामले सामने आ रहे हैं।

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