नवरात्रि का पहला दिन माता का पहला स्वरूप!
उत्तराखण्डः 30 मार्च . 2025, रविवार कोचैत्र नवरात्र का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना और भक्ति का प्रतीक है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 30 मार्च 2025 से शुरू होकर 7 अप्रैल 2025 तक मनाई जाएगी। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है, जो पर्वतों की पुत्री और शक्ति का प्रतीक हैं। “माँ शैलपुत्री” देवी शैल पुत्री का वर्णन हमें ब्रह्म पुराण में मिलता है। पुराण के अनुसार चैत्र प्रतिपदा के प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्मा ने संसार की रचना की थी। माना जाता है कि इसी दिन श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था।मां शैलपुत्री नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाती हैं। वे प्रकृति की शक्ति और स्थिरता का प्रतीक हैं। उनकी आराधना से जीवन में शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
नवरात्र की प्रथम देवी शैलुपुत्री मानव मन पर अपनी सत्ता रखती हैं। उनका चंद्रमा पर भी आधिपत्य माना जाता है। शैलपुत्री पार्वती का ही रूप हैं। पर्वतराज हिमालय के घर में जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
कथा है कि देवी पार्वती शिव से विवाह के पश्चात हर साल नौ दिन अपने मायके यानी पृथ्वी पर आती थीं। नवरात्र के पहले दिन पर्वतराज
अपनी पुत्री का स्वागत करके उनकी पूजा करते थे, इसलिए नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की पूजा की जाती है।
श्वेतवर्ण शैलपुत्री के सर पर सोने के मुकुट में त्रिशूल सुशोभित है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में कमल सुशोभित है।
मान्यता है कि शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति को सुख, सुविधा, माता, घर, संपत्ति, में लाभ मिलता है। मनोविकार दूर होते हैं। इन्हें सफेद फूल चढ़ाएँ, गाय के घी का दीपक जलाएँ। दूध-शहद और खोए की मिठाई का भोग लगाएँ।
“जय माता दी”