उत्तराखंड में पंच प्रयाग, विश्व भर के हिंदुओं को आपस में जोड़ती है।

यदि कोई हिंदू दो नदियों के "संगम" पर स्नान करें तो पुण्य और अधिक होगा मिलेगा।

उत्तराखण्डः 04 फरवरी . 2025, प्रयाग : प्राप्त जानकारी के मुताबिक दो या अधिक नदियों के संगम को प्रयाग कहते हैं। विशेष तिथियों पर सनातन धर्मावलंबी विभिन्न नदियों में स्नान को पुण्य कर्म मानते हैं और ऐसी मान्यता है की यदि कोई हिंदू दो नदियों के “संगम” पर स्नान करें तो पुण्य और अधिक होगा मिलेगा। उत्तराखंड में पंच प्रयाग है।

▪विष्णु प्रयाग, ▪नंद प्रयाग, ▪कर्णप्रयाग, ▪रुद्रप्रयाग, ▪देवप्रयाग

विष्णु प्रयाग = अलकनंदा जी और धौलीगंगा जी का संगम स्थल है।
नन्द प्रयाग = अलकनंदा जी और नंदाकिनी जी का संगम स्थल है।
कर्णप्रयाग = अलकनंदा जी और पिंडार नदी का संगम स्थल है।
रुद्रप्रयाग = अलकनंदा जी और मंदाकिनी नदी का संगम स्थल है।

फिर देवप्रयाग में अलकनंदा जी भागीरथी जी से मिलती हैं और देवप्रयाग से आगे वे गंगा जी कहलाती हैं और फिर गंगासागर में हिंद महासागर से मिलती हैं। पौराणिक काल से ऋषि, मुनि और देवता इन तीर्थस्थलों पर तपस्या करते रहे हैं.

इसी प्रकार यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना जी भी गंगा जी से मिलने के लिए उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, इत्यादि राज्यों में चंबल, बेतवा, सेंगर, छोटी सिंधु, केन, गिरी,ऋषि गंगा, हनुमान गंगा, आसान और बाटा जैसी नदियों से मिल कर प्रयागराज में गंगाजी और सरस्वती जी से संगम करती है।

इसी पवित्र संगम पर प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। प्रयागराज सिर्फ पवित्र नदियों का संगमस्थल ही नहीं अपितु भारतीय सभ्यता के विभिन्न रंगों का संगम है।

भारत के छह लाख गांवों में से कोई ना कोई इस पुण्यभूमि में त्रिवेणी जी में डुबकी लगा कर अपनी आत्मा और मन को पवित्र करने का प्रयास करता है। करोड़ों लोग बिना किसी न्योता, सूचना, निवेदन या भौतिक लाभ के लालच के कष्ट सह कर भी चले आते हैं।

अडानी के महल से, भड़भूजे के भाड़ से, एप्पल के बोर्ड रूम से, हाट से, बाजार से, आईआईटी के कैंपस से, सुदूर अफ्रीका और अमेरिका के शहरों से सनातनी निकल पड़े हैं, खेत से खलिहान से किसान, झाड़ियों और जंगलों से, पहाड़ों और पर्वतों से वनवासी, गिरिवर और कंदराओं से नागा साधु, सभी त्रिवेणी संगम में  अमृत_कुंभ का पान करेंगे.

उत्सव_धर्मी सनातनी समाज विश्व के कोने कोने से चला आता हैं संतों से सत्संग करने, मेले में मोल कराने, उत्सव मनाने और स्वयं को #धन्य बनाने.. न कोई भेदभाव.. ना कोई दुराव… संविधान तो सिर्फ नागरिकों को “बांधता” है जोड़ता नहीं, परंतु सनातन संस्कृति विश्व भर के हिंदुओं को आपस में जोड़ती है।

एकत्व”देने” का भाव है कुंभ मेला.. हर कोई यथाशक्ति दान करता है। कोई अन्नदान तो कोई वस्त्रदान तो कोई श्रमदान ही करता है। ये वो उत्सव है जहां धर्म का अवलंबन लिया हिंदू अपना अहंकार, अपना स्वार्थ, अपने मन का मैल छोड़ देता हैं।

प्रयागराज में स्नान, दान और त्याग करने वाला प्रत्येक व्यक्ति मन ही मन प्रण लेता है कि जब वह अपने घर लौटेगा तो एक परिष्कृत मनुष्य बनेगा. भावी जीवन में धर्म के मार्ग पर चलने का उसका संकल्प पुष्ट होता है। चाहे कितने भी अंश में हो..!

आप सभी सनातनियों की मनोकामना पूर्ण हो। जो इस बार प्रयागराज नहीं भी जा पा रहे हैं, वे तीर्थयात्रा पर जाने वाले अपने आस पड़ोस, परिवार के अन्य सदस्यों से मिलकर, बात करके उनका उत्साहवर्धन करें। यह भी सेवा है। यह भी पुण्यकर्म है।

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