इस बार लोगो में बना संशय: दीपावली की सही तारीख, लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त!
उत्तराखण्डः 30 अक्टूबर 2024,बुधवार को (धर्म डेस्क) हिंदू धर्म में दीपावली के पर्व का विशेष महत्व है। वही इस हिंदू पंचांग के मुताबिक हिंदू धर्म में दिवाली के पर्व का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को दिवाली मनाई जाती है। लेकिन इस बार लोगों में दिवाली की तिथि को लेकर भारी संशय बना हुआ है। गौरतलब है कि हिंदू पंचांगों के आधार पर इस वर्ष कार्तिक मास अमावस्या तिथि की शुरुआत 31 अक्टूबर 2024 को 3 बजकर 52 मिनट पर होगी और इस तिथि का समापन 01 नवंबर 2024 को 6 बजकर 16 मिनट पर होगा। वही अगले दिन 01 नवंबर 2024,शुक्रवार को सायं 06: 16 मिनट तक अमावस्या तिथि रहेगी और सूर्यास्त 05:36 मिनट पर होगा।
धर्मशास्त्र /ज्योतिष के जानकारों की माने तो इस प्रकार देखा जाए तो 01 नवंबर को भी प्रदोष काल और अमावस्या तिथि रहेगी। यानी 01 नबंवर को सायं 05:36 मिनट से लेकर 06:16 मिनट तक लक्ष्मी पूजन के लिए करीब 40 मिनट का ही शुभ मुहूर्त मिलेगा। वही इस दिवाली (Diwali) का त्योहार देशभर में पूरे हर्षोल्लास के साथ सभी मनाते हैं। रोशनी के इस त्योहार का इंतजार हर किसी को बेसब्री से रहता है। दीपावली के पर्व का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के अमावस्या तिथि में दिवाली सेलिब्रेट की जाती है। यह अमावस्या की रात में मनाने का त्योहार है. दीपोत्सव को रात में ही मनाया जाता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार काशी और उज्जैन के विद्वान दे चुके 31 को दीपावली पर अपना मत है।
वर्ष इस दीपावली को लेकर काशी के विद्वानों ने अपना मत देते हुए कहा कि 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्रोचित है। इससे पहले ही उज्जैन के विद्वान 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने की बात कह चुके हैं। इसके पीछे बीएचयू के विश्व पंचांग के समन्वयक प्रो. विनयकुमार पांडे और श्रीकाशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो. रामचंद्र पांडेय ने कहा था कि पारंपरिक गणित से निर्मित पंचांगों में कोई भेद नहीं है। सभी पंचांगों में अमावस्या का आरंभ 31 अक्टूबर को सूर्यास्त से पहले होकर एक नवंबर को सूर्यास्त के पूर्व ही समाप्त हो रहा है। इससे पूरे देश में पारंपरिक सिद्धांतों से निर्मित पंचांगों के अनुसार 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाई जाना सिद्ध है।
धर्मशास्त्र /ज्योतिष के जानकारों की माने तो वही इस शुभ लक्ष्मी पूजा मुहूर्त 31 अक्टूबर को शाम 6:54 बजे से 8:33 बजे के बीच है, जो प्रदोष काल (01 नवंबर 2024,शुक्रवार को शाम 6:02 बजे से 8:33 बजे तक) और वृषभ काल (शाम 6:54 बजे से 8:54 बजे तक) के साथ संरेखित है, जिससे पूजा का महत्व बढ़ जाता है।प्रदोषकाल के लिए धर्म शास्त्र में उल्लेख है कि दोनों दिन अमावस्या प्रदोषकाल को स्पर्श कर रही हो तो दूसरे दिन की तिथि को स्वीकार करना चाहिए। दूसरे दिन एक नवंबर को तुला राशि में सूर्य और चंद्रमा 15 डिग्री में रहेंगे, इसमें महालक्ष्मी पूजन करने का श्रेष्ठ योग है। इस दिन ही पुष्कर योग और स्वाति नक्षत्र भी मिल रहा है।