देहरादून/उत्तराखण्ड: 11-APRIL.. 2023, खबर… राजधानी से मंगलवार को डॉ0 रवि शरण दिक्षित, एसोसिएट प्रोफेसर, इतिहास विभाग डीएवी (पीजी) कॉलेज देहरादून ने अपनी कलम से बहुत सुंदर कोशिश की जिसमें (NCERT) एनसीईआरटी की पुस्तकों में इतिहास पर चिंतन व मनन की बात कही तो आईये जानते है! डॉ0 रवि शरण दीक्षित प्रोफेसर, इतिहास विभाग डीएवी के कमल से इतिहास लेखन में नई संभावनाएं भविष्य के मार्गदर्शन के लिए समाज को अतीत का तथ्यों के साथ वर्तमान में प्रस्तुति इतिहास लेखन की चिंतन की दिशा को निर्धारित करता है, तथ्यों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, समय और उपलब्धता और आवश्यकता के अनुसार इतिहास लेखन में परिवर्तन समय-समय पर प्रदर्शित भी होता रहता है l
वर्तमान परिवेश , परिस्थितियों में इतिहास लेखन और एनसीईआरटी की पुस्तकों में किए जा रहे परिवर्तनों समय की आवश्यकता और समाज के मार्गदर्शन के उद्देश्य को प्रदर्शित करते हैं l पाठ्यक्रम में बदलाव एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए ,होती रही है, और होती रहेगी l अपेक्षा यही होती है कि वह निष्पक्ष भाव से सामने आए इतिहास लेखन के भारतीय संदर्भ को अगर देखते हैं, तो प्राचीन समय की भी बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां पिछले 200 से 300 वर्षों में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर बदलती और बनती नहीं है, जहां तक मध्यकालीन इतिहास पर चर्चा की जाती है l
उसमें कई पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि इतिहास लेखन तात्कालिक शासकों के दरबार की एक प्रक्रिया थी जिसमें निश्चित रूप से उसके लेखन की स्वतंत्रता नहीं थी और ऐसे कई उदाहरण हैं , जैसे क्या भारतीय इतिहास में राजा सुहेलदेव को कितना जानते हैं? जहां पर लेखक ने एक सीमा तक लिखा है l शासक के रुख को ही प्रदर्शित कर पाने के लिए बाध्य था, ऐसे तत्कालिक बहुत कम इतिहासकार हैं जिन्होंने शासक की नीतियों के विरोध में कुछ लिखा है, हालांकि उस समय भी समाज के बहुत सारे पक्ष थे ,जो अनछुए रह गए l और प्रायः लेखन से गायब भी हो गए l
डॉ0 रवि शरण दीक्षित के अनुसार वर्तमान परिवेश में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस पर भी बहुत काम होना अति आवश्यक महसूस होता है क्योंकि इतिहास समग्र रूप से धर्मनिरपेक्ष रूप से तथा मार्गदर्शक के रूप में सामने आना चाहिए lजिसमें मध्यकालीन इतिहास पर बहुत सारा काम अभी किया जाना बाकी है, क्योंकि तत्कालिक समाज में बहुत सारे और ऐसे राज्य और शासक थे जिनका उल्लेख और संदर्भ मिलना लगभग नहीं के बराबर हैl
उनके विषय में उपलब्ध तथ्यों के आधार पर लिखा जाना और उनको इतिहास लेखन में पाठ्यक्रम में जोड़ना अति आवश्यक है l ब्रिटिश शासन काल में और उसके पश्चात आजादी के समय के बाद भी इतिहास लेखन की प्रवृत्ति अभी भी सीमित स्रोतों तक सीमित रही है l सीमित सोच के साथ लिखे गए इतिहास का पुनर्विलोकन अति आवश्यक है l
साथ ही साथ यह भी बहुत महत्वपूर्ण है सामाजिक परिदृश्य में जहां समभाव भी दिखता है, धार्मिक चिंतन भी समाज को प्रभावित करता है ,परंतु राजनीतिक परिदृश्य और नेतृत्व उस पक्ष को सामने लाने में इतिहासकार के माध्यम से उतना सफल नहीं हो पाया जितना अपेक्षित है वर्तमान परिवेश में इतिहास लेखन पर बेहतर काम करने की आवश्यकता है जो समाज को यह बता सके कि भारतीय संस्कृति की विशेषता पूरे विश्व में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती थी l
और वर्तमान परिवेश में भी एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रही है l तथ्यों की उपलब्धता और इतिहासकार का निष्पक्ष भाव समाज के संयोजक दलित वर्ग पिछड़ा वर्ग जनजातियों, महिलाओं , वीरों वीरांगनाओं के योगदान को सबके सामने लाकर ही बेहतर और वास्तविक इतिहास सामने आएगा , इसके साथ ही वर्तमान समय में युवा भारतीय उनके योगदान ओं से प्रेरित होकर नया इतिहास भी लिखेंगे l।