राजधानी में गूंज ओ उत्तराखंडियों जागी जा,…जागी जा,भू कानून पर तानी मुठ्ठी! 

देहरादून/उत्तराखण्ड: 25 Dec.–2023: खबर…. राजधानी से  उत्तराखण्ड  में मूल निवास लागू करने और कट ऑफ डेट 26 जनवरी 1950 घोषित किए जाने के साथ भू कानून लागू किए जाने की जोरदार तरीके से मांग उठाई. वही जिसमें प्रदेश में ठोस भू कानून लागू होना बेहद जरूरी है। वही इस दौरान देहरादून में पारंपरिक परिधान में गरजे लोग, मूल निवास 1950 और भू कानून को लेकर तानी मुठ्ठी!  वही इस 24 Dec.–2023, रविवार को देहरादून के परेड ग्राउंड में   मूल निवास भू कानून स्वाभिमान रेली मेँ प्रतिभाग करने सभी राज्य आंदोलनकारी व सेंकड़ों संस्था व संगठनों 10:30am बजे सीधे परेड ग्राउण्ड पहुंच कर मूल निवास व भू-कानून की स्वाभिमान रैली मेँ प्रतिभाग किया।

उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी मंच द्वारा  धामी 2.0 सरकार से मांग की है कि अब राज्य आंदोलन की तर्ज पर मूल निवास और भू कानून लागू कराने हेतु अब जन मानस सड़क पर आ चुका है। अब सरकार को पुनः इसको 371 कें अंतर्गत हमारे हक हकूक सुरक्षित किये जाएं। अन्यथा जन आंदोलन खड़ा होगा। उन्होनें  कहा शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो, ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे, कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे, पर्वतीय क्षेत्र में भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगाई जाए।

उन्होंने कहा कि आंदोलन का नेतृत्व उत्तराखंड की जनता कर रही है। देहरादून में इस महारैली को तमाम विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों के समर्थन के साथ ही लोकगायक नरेंद्र सिंह का भी साथ मिल गया है। नरेंद्र सिंह नेगी ने लोगों से इस मुद्दे को लेकर स्वाभिमान रैली में जुटने का प्रदेशवासियों से आह्वान किया है…उठा जागा उत्तराखंड्यूं सौं उठाणों वक्त ऐगे।’ गीत के जरिये अपील की जा रही है। जनता के इस आक्रोश ने सरकार की टेंशन बढ़ा दी है ! वही इसी के साथ  देहरादून में उत्तराखंड में सशक्त भू -कानून और मूल निवास 1950 लागू करने की मांग को लेकर लोगों का हुजूम उमड़ा।

वही    उत्तराखण्ड  लोकगायक नेगी के अलावा कई अन्य प्रमुख व आम लोग सोशल मीडिया के जरिए मूल निवास स्वाभिमान रैली के समर्थन में प्रचार अभियान चलाए हुए हैं। प्रदेश के इस अहम मुद्दे पर जन संगठनों की हुंकार से प्रदेश में राजनीतिक हलचल बढ़ने लगी है। वही इस स्वाभिमान रेली मेँ  खास बात ये रही कि लोग पांरपरिक परिधान में ढोल नगाड़ों के साथ रैली में हिस्सा लेने पहुंचे और एक स्वर में अपनी मांगों को रखा। इसी के साथ उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले राज्य के स्थानीय मुद्दों पर सियासत गरमा गई है।

वही जिसमें  धामी सरकार ने अपने फैसले से इस आक्रोश को थामने की कोशिश तो जरूर की है लेकिन तमाम संगठन सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े करते हुए आंदोलन को जारी रखने की बात कह रहे हैं।यहां सरकार के खिलाफ नारेबाजी भी की।मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि यह उत्तराखंड की जनता की अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई है। यह जन आंदोलन है, जिसका नेतृत्व उत्तराखंड की आम जनता कर रही है। इसलिए इस आंदोलन से संबंधित कोई भी फैसला आम जनता के बीच से ही निकलेगा।

उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी मंच एवं   संघर्ष समिति द्वारा  प्रमुख मांगें..!

1. प्रदेश में ठोस भू कानून लागू हो।2. राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
3. शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
4.ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
5.गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
6.पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
7. ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।8.प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।

वही इस महारैली में वक्ताओं ने कहा कि यह भावनाओं का जनांदोलन भी है। यह आंदोलन प्रदेश के संसाधनों की रक्षा का भी है। इस आंदोलन में मातृशक्ति के साथ ही विभिन्न संगठन, कवियों, लेखकों, बुद्धिजीवियों की उपस्थिति बताती है कि इस मुद्दे को प्रदेश के मूल निवासियों के अधिकारों की नजर से देखना चाहिए।

बता दें कि उत्तराखंड में साल 2001 के बाद से मूल निवास प्रमाण पत्र की जगह पर स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनना शुरू हुए थे। इसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से भी आदेश जारी हुए कि राज्य गठन के समय जो भी व्यक्ति उत्तराखंड में रहा, वो यहां का निवासी माना जाएगा। वहीं देश में मूल निवास प्रमाण पत्र साल 1950 से बनने शुरू हुए थे। बाद के वर्षों में सभी राज्यों में यही व्यवस्था दी गई कि 10 अगस्त, 1950 के समय जो व्यक्ति जिस राज्य में रहा, उसे वहीं का मूल निवासी माना गया। वहीं क्षेत्रीय दल यूकेडी समेत तमाम दलों ने भी सरकार से राज्य में इसी व्यवस्था को लागू करने की मांग की है।

इस दौरान उत्तराखण्ड  में  कांग्रेस और भाजपा इस मुद्दे को लेकर आमने-सामने हैं कांग्रेस मूल निवास और भू कानून के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर हमलावर है तो भाजपा का साफ कहना है कि भाजपा सरकार और संगठन जनहित के मुद्दों पर प्रदेश की जनता के साथ है। रविवार को देहरादून के परेड ग्राउंड में   मूल निवास भू कानून स्वाभिमान रेली  में  हजारो की सख्या में उत्तराखण्डी एकत्र होकर लोग रैली की शक्ल में काॅन्वेंट स्कूल से होते हुए एसबीआई चौक, बुद्धा चौक, दून अस्पताल, तहसील चौक होते हुए कचहरी स्थित शहीद स्मारक पहुंचें। उत्तराखंड में सशक्त भू-कानून और मूल निवास लागू करने की मांग को लेकर रैली में भारी संख्या में लोग पहुँचे। रैली के सपोर्ट में महिलाएं उत्तराखंड के पारंपरिक परिधानों में आई थी। इस दौरान कुछ लोग ढोल दमाऊ, हुड़का और थाली बजाते हुए भी नजर आए।

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