चारधाम की रक्षक मां 9 साल बाद अपने मूलस्थान पर विराजमान हुई !
देहरादून/उत्तराखण्ड: 30-JAN.. 2023, उत्तराखण्ड गढ़वाल श्रीनगर में चारधाम की रक्षक मां धारी देवी 9 साल बाद अपने मूलस्थान पर विराजमान हो गई हैं। इस दौरान मंदिर को भव्य रुप से सजाया गया है। बता दें कि सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है. यहां चारधाम की रक्षक मां धारी देवी नवनिर्मित मंदिर परिसर में 24 जनवरी से शुरू महानुष्ठान के लिए 21 पंडितों को आमंत्रित किया गया , जो कि 28 जनवरी की सुबह शुभ मुहूर्त में धारी देवी, भैरवनाथ और नंदी की प्रतिमाएं अस्थायी परिसर से नवनिर्मित मंदिर परिसर में स्थापित कर दी गई। । वहीं महानुष्ठान के बादआखिरकार लंबे इंतजार के बाद धारी देवी की मूर्ति नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हो गई है।
आपको बता दे कि यहां भक्त हर रोज दूर-दूर से मन्नत मांगने आते हैं। जहां हर दिन माता को अलग अलग रूपों में भक्त देखते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद माता धारी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। वही यहां मूर्ति सुबह कन्या रूप में दिखती है, और फिर दिन में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है। वही इसी के साथ मां धारी देवी को लेकर मान्यता है कि वह चारधाम की रक्षा करती हैं और मां को पहाड़ों की रक्षक देवी भी माना जाता है।
बता दे कि यहां माना जाता है कि इसकी वजह से उस साल केदारनाथ आपदा आई थी, जिसमें सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए थे. कहा जाता है कि माता की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था। और उसके महज कुछ ही घंटों बाद केदारघाटी में भयंकर आपदा आ गई थी।
श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर दूर सिद्धपीठ धारी देवी का मंदिर अलकनंदा नदी किनारे स्थित था। वही गढ़वाल में श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के बाद यह डूब क्षेत्र में आ रहा था। एक पौराणिक कथन के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनी और देवी ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया. हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर की विशेष पूजा की जाती है। वही इस देवी मां काली का आशीर्वाद पाने के लिए दूर और नजदीक के लोग इस मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं।
वही इस मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है। एक पौराणिक कथन के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनी और देवी ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर की विशेष पूजा की जाती है। देवी काली का आशीर्वाद पाने के लिए दूर और नजदीक के लोग इस मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं। वही इस मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है।
इसके लिए इसी स्थान पर परियोजना संचालन कर रही कंपनी की ओर से पिलर खड़े कर मंदिर का निर्माण कराया जा रहा था लेकिन जून 2013 में केदारनाथ जलप्रलय के कारण अलकनंदा नदी का जलस्तर बढ़ने की वजह से प्रतिमाओं को अपलिफ्ट कर दिया गया। पिछले नौ साल से प्रतिमाएं अस्थायी स्थान में विराजमान थीं।