प्रथम सत्र के अध्यक्षता डॉक्टर माधव बी कार्की ( पूर्व एडवाइजर, प्रधानमंत्री नेपाल , एवं सदस्य ईपीपीसीसीएमएन नेपाल ) ने की। उन्होंने अपने संबोधन में बढ़ते हुए तापमान पर चिंता जताई और इको- डिजास्टर एंड रिस्क रिडक्शन के माध्यम से भविष्य में होने वाले आपदाओं को और करीब से समझ कर उसका समाधान किया जा सकता है ।
वही पहले सेशन के मुख्य स्पीकर श्री रवि सिंह (सेक्रेटरी जनरल एंड सीईओ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने अपने संबोधन में कहा कि डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान में माउंटेन रीजन और कोस्टल रीजन के डिजास्टर के जो स्थिति होती है वह अलग-अलग होती है।
वही इस कार्यक्रम के अन्य पैनलिस्ट डॉ मैथ्यू वेस्टोबी ( एसोसिएट प्रोफेसर फिजिकल ज्योग्राफी, स्कूल ऑफ़ जियोग्राफी, अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंस , फैकल्टी ऑफ़ साइंस एंड इंजीनियरिंग, यूनिवर्सिटी का प्लाइमाउथ, यूके ने अपने संबोधन में कहां की हाई एल्टीट्यूड और माउंटेन रीजन में हमारा जीवन और प्रकृति दोनों एक साथ रहता है, हमें इनके बीच बैलेंस बनाकर पूरे इकोसिस्टम को सस्टेनेबल रखना चाहिए। उन्होंने केदारनाथ त्रासदी, अलकनंदा नदी में आई बाढ़ की वजह से बदलाव की बात कही,
अन्य पैनलिस्टों में शामिल डॉक्टर प्रिया नारायण ( सीनियर मैनेजर, अर्बन डेवलपमेंट, डब्ल्यू आर आई, इंडिया) ने अपने संबोधन में इंपैक्ट आफ क्लाइमेट चेंज इन इंडिया के ऊपर बात कही और कहा कि पर्यावरण में बदलाव किसी खास राज्य की बात नहीं है यह सब अब पूरे भारत के जलवायु परिवर्तन में दिख रहा है। पैनलिस्ट डॉ. हामान उनुसा ( यूनिट हेड फॉर स्टडीज एंड प्रोस्पेक्शन, जी ई एफ ऑपरेशनल फोकल प्वाइंट, कैमरन) ने अपने संबोधन में कहा कि क्लाइमेट चेंज और डिजास्टर का असर कृषि भूमि पर सबसे अधिक हो रहा है और अब यह कृषि भूमि का मुद्दा दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुका है।
वहीं पैनलिस्ट श्री कृतिमान अवस्थी ( सीनियर एडवाइजर और टीम लीडर वेटलैंड मैनेजमेंट बायोडायवर्सिटी एंड क्लाइमेट प्रोटेक्शन, इंडो-जर्मन बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम, GIZ इंडिया ने अपने संबोधन में इंडो जर्मन बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम के बारे में बात की और कहा की, वही डॉक्टर शालिनी ध्यानी ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से अपनी बात रखी और उन्होंने कहा कि हम देख सकते हैं की पहाड़ी क्षेत्रों में क्लाइमेट चेंज का असर बहुत तेजी से हो रहा है, यह इकोसिस्टम और बायोडायवर्सिटी के स्टडी करने के बाद ही पता चलता है कि इससे कितना नुकसान हो रहा है! हम देख सकते हैं कि पहाड़ों में कई तरह के जीव जंतु विलुप्त होने के कगार पर है इसका एकमात्र कारण पर्यावरण में बदलाव ही है।
वही इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में टेक्निकल सेशन भी रखे गए हैं जिसके अंतर्गत स्पेस बेस्ड इनफॉरमेशन फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट, बिल्डिंग रेसिलियंस ऑफ कम्युनिटीज थ्रू इकोसिस्टम बेस्ड अप्रोच, मरीन डिजास्टर मैनेजमेंट इनलैंड वॉटर रिसोर्सेस इंपैक्ट ओन एनवायरमेंट – बिल्डिंग इकोनॉमी फॉक्स जैसे मुद्दों पर मंथन किया गया।