यहां मेडिकल स्टोर पर ग्रहाक को 40रू0 कि दवा 162रू0 में, ड्रग विभाग के अधिकारी मौन !

देहरादून/उत्तराखण्ड: 23 AUGUST-2023: खबर… राजधानी से बुद्धवार को देहरादून स्थित प्रदेश के सबसे बड़े राजकीय दून मेडिकल कालेज अस्पताल में रोज़ आना करीब 2500 से अधिक मरीज़ आते हैं। ज़ाहिर है उन्हें दवाओं की भी ज़रूरत होती है। और सभी दवाएं अस्पताल से उपलब्ध नहीं हो पातीं! वही स्वास्थ्य विभाग द्वारा सभी अस्पतालों को निर्देश हैं कि ओपीडी में डॉक्टर वह जेनेरिक दवा या सॉल्ट ही लिखें ताकि मरीज़ को दवा के लिए भटकना न पड़े। और मरीज को सस्ती दवाएं प्राप्त हो सके।

लेकिन कुछ ऐसी दवाएं होती जो जनऔषिधी में नही मिल पाती। जिस पर मरीज बहार के मेडिकल स्टोरो से मंहगे दामो दवा खरीदने को मजबूर हो जाता है। कहते है कि मरता क्या नही करता। वही दून अस्प्ताल के सामने जितनी भी मेडिकल स्टोर है वह सभी मरीजो को महंगी  व लोकल दवा को ब्रांडेड बता कर लूट रहे है।

जिसका आज एक ग्रहक ने हमारे संवाददाता को बताया कि उसने दून अस्पताल  के सामने से एक मेडिकल MS  स्टोर से जुकाम व एनर्जी की दवा का पत्ता खरीदा जिसकी किमत 162रू MRP दर्शायी गई, उसे खरीदने के साथ बिल भी प्राप्त किया। उसके बाद ग्राहक ने जब घर जाकर दवा की पैकिंग खोली उसके ऊपर  रेट का स्टीगर दुकानदार की ओर से 162रू MRP  लिखी थी। वही स्टीगर खुरचने के बाद नीचे दवा कंपनी की फैट्री रेट 40रू0 MRP  एक पत्ते का प्रिंट लिखा था। जिस पर ग्राहक हैरान हुआ कैमिस्ट वाले पर पूछ उसने कहा जो हमारा रेट दवा का लिखा वही है जिसका बिल भी दिया।

उसके बाद ग्राहक ने संबंधित औषिधी विभाग के अधिकारी को दवा के पत्ते व बिल की फोटो वाहट्सप पर शिकायत के रूप में भेजी और फोन पर पूरा मामला संज्ञान में डाल दिया उसके बाद औषिधी विभाग के उस अधिकारिय को भेजी जो मेडिकल स्टोरो को लांइसेस जारी करता है। वही इस संबंध में हमारे रिपोर्टर ने जब संबंधित ड्रग विभाग के अधिकारी से इस संबंध में  बताया कि  MS मेडिकल स्टोर के द्वारा अपने रेट के रेप लगा कर  ग्राहको से कई गुना दाम वसूल रहा है। इस पर ड्रग विभाग के डॉ0 अधिकारी सहाब चुप्पी मार गए।

वही सूत्र बताते है कि इससे साफ जाहिर होता है कि ड्रग विभाग में मेडिकल स्टोरो की मोटी कमीशन के कारण अधिकारी व देहरादून जिला का ड्रग इंस्पेक्टर कार्यावाही करने पर कतरते है। वहीं दवा बेचने के लिए मेडिकल स्टोरो पर फार्मासिस्ट भी नहीं रहते। साथ ही जेनरिक दवाओ को 80प्रतिशत छुट नही देते और उस दवा के पत्ते पर प्रिंट रेट पर ही दाम वसूलते है।

वही दूसरी ओर राज्य में मेडिकल स्टोरो में दवाइयां का बड़ा खेल अधिकारियों की मिली भगत ही खेला जा सकता है। साथ ही बात करे मेडिकल स्टोरो की तो दुकानो में कई अनियमितता देखेने के मिल जाएगी। वही क्षेत्रीय ड्रग निरीक्षक/अधिकारी अधिकम तैयाहारो के नजदीक आने पर मेडिकल स्टोरो पर छापे मारी क्यो करते है?  जरा सोचिए!

वही कई मेडिकल स्टोरों पर प्रतिबंधित दवाएं भी बिकती है। तो कही मेडिकल स्टोर का लाइसेंस एक्सपायर हो चुका था तो अधिकतम मेडिकल स्टोर पर फार्मासिस्ट नहीं रहते । यहीं नहीं कुछ मेडिकल स्टोरों पर साफ सफाई दुरुस्त नहीं पाई गई। अनियमितताएं मिलना इन मेडिकल स्टोरों पर आम बात हो गई ।वहां दोनों स्टोर पर न तो लाइसेंस था और न ही फार्मासिस्ट दवाइयां बेच रहे थे।

Leave A Reply

Your email address will not be published.