पर्व न केवल हमारे धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं! सरस्वती जी

करवाचौथ का पर्व एकता, प्रेम और आध्यात्मिकता का प्रतीक!

उत्तराखण्डः 20 अक्टूबर 2024, रविवार को देहरादून ऋषिकेश,  परमार्थ निकेतन में प्रखर वक्ता माधवी लता जी पधारी। उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती जी से भेंट की।  इस मौके पर  परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने करवा चौथ की शुभकामनायें देते हुये कहा कि सनातन है तो पर्व व त्यौहार है; सनातन है तो संस्कृति व संस्कार है; सनातन है तो मूल व मूल्य है और सनातन है तो प्रेम व परिवार है, याद रहे जब तक सनातन है तब तक सुहाग है।

 वही इस पर्व, भारतीय संस्कृति के संवर्द्धक और संरक्षक हैं। पर्व न केवल हमारे धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर के संवर्द्धक और संरक्षक भी हैं। त्यौहार हमारी संस्कृति को संजोकर रखते हैं और उसे समृद्ध बनाते हैं। त्यौहार हमारी संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग हैं। हर त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा होती है, जो हमें हमारे अतीत से जोड़ती है। करवाचैथ, दीपावली, होली, दशहरा, रक्षाबंधन जैसे त्यौहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। इन त्यौहारों के माध्यम से हम अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।

वही इस त्यौहार समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देते हैं। जब हम एक साथ मिलकर किसी त्यौहार को मनाते हैं, तो यह हमें एकजुटता और सामूहिकता का अनुभव कराता है। त्यौहार हमारी आध्यात्मिकता को भी पोषित करते हैं। दीपावली का दीया, होली का रंग, और रक्षाबंधन की राखी ये सभी प्रतीकात्मक रूप से हमारे आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक हैं। ये हमें हमारे अतीत से जोड़ते हैं। त्यौहार हमारी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा हैं जो हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखने की प्रेरणा देते हैं।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि करवा चैथ का पर्व भारतीय समाज में विशेष महत्व रखता है। यह पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण को और भी गहरा बनाने का एक प्रतीकात्मक अवसर प्रदान करता है।

इस अवसर पर करवा चैथ के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं। यह दिन समाज में एकता और सद्भाव को बढ़ावा देता है इससे समाज में सामूहिकता और समर्पण की भावना प्रबल होती है। यह पर्व हमें हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों की याद दिलाता है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं, सुंदर मेहंदी लगाती हैं और सजधज कर पूजा करती हैं। करवा चैथ के गीत, कहानियाँ और अनुष्ठान हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाते हैं और उसे संजोकर रखने की प्रेरणा देते हैं।

इस अवसर पर माधवी लता जी ने कहा कि करवा चैथ का पर्व आत्मसंयम, समर्पण और पूजा का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और सूर्यास्त के बाद चंद्रमा को अघ्र्य देकर पूजा संपन्न करती हैं। उपवास और पूजा आत्मशुद्धि का एक माध्यम है, जो महिलाओं को आत्मिक संतुलन और शांति प्रदान करता है।

साथ ही  करवा चौथ का पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम और समर्पण को और भी मजबूत बनाता है। इस दिन पति अपनी पत्नी के प्रति अपने प्रेम और सम्मान को व्यक्त करते हैं जिससे रिश्ते में विश्वास और आपसी समझ को बढ़ावा मिलता है। साध्वी जी ने कहा कि करवा चैथ का पर्व एक ऐसा अवसर है, जो समाज, संस्कृति और आध्यात्मिकता के विभिन्न पहलुओं को एक साथ लाता है। यह दिन हमें हमारे रिश्तों की महत्ता और हमारे संस्कृति की धरोहर की याद दिलाता है। करवा चैथ के इस पावन पर्व पर, हम सब मिलकर प्रेम, समर्पण और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का संकल्प लें।

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