दून अस्पताल में मैनेजमेंट का अभाव के चलते सभी तंग हो रहे!..ऐसी मीटींगें किस काम की!

प्राचार्य डॉ गीता जैन की मीटींगें एवं सिस्टम की चर्चा!

उत्तराखण्डः 18-DEC. 2024, ! देहरादून / राजधानी स्थित सूबे के सबसे बड़े कहे जाने वाले राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल, देहरादून के हालात सुधरने की जगह बिगड़ते नजर आ रहे हैं।  जिसमें इस दून राजकीय मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य का प्रभार प्रोफेसर/ डॉक्टर गीता जैन से नही सम्भल रहा है। दून हॉस्पिटल के चिकित्सा अधिकारी भी प्राचार्य डॉ गीता जैन की मीटिंगों एवं सिस्टम की चर्चा कर रहे हैं। यहां पर प्राचार्य कक्ष में रोज-.रोज की होने वाली मीटिंगों से डॉक्टर व स्टाफ कर्मी भी परेशान हो गए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राजकीय दून मेडिकल अस्पताल में कई तरह कीव्यवस्थाएं बाधित हो रही है। यह मरीज तो परेशान है ही। अब यह के डॉ अधिकारी एवं कर्मचारी भी तंग नजर आ रहे हैं। सूत्रो की माने तो इस मीटिंगों से तो सबसे ज्यादा एमएस व डिप्टी एमएस तंग दिख रहे है। डॉक्टर कैसे मरीज को अपना समय दे…जरा सोचिए…?

सूत्रो की माने तो वही इस ’दून मेडिकल कॉलेज की न्यू ओपीडी ब्लॉक के पांचवें मंजिल पर प्राचार्य कक्ष में दिनभर 4.से 5 मीटींगें  हो रही है । जिसका असर कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है। साथ ही  रोज रोज की प्राचार्य कक्ष में  होने वाली मीटींगें में डॉक्टर अधिकारी एवं चिकित्सालय स्टाफ काम छोड़ छोड़ कर मीटिंगों की टेंशन लेकर घूम रहे हैं।

दून अस्पताल कॉलेज की प्राचार्य डॉक्टर गीता जैन ने इतनी मीटिंग रोज कर जाने क्या दून अस्पताल में परिवर्तन चाहती है।   लेकिन इतनी मीटिंग अगर लगातार रोज ऐसी ही होती रही तो अस्पताल की व्यवस्थाएं  समय पर ना उपलब्ध होने पर यहा मरीज तड़प रहे हैं ।  साथ ही  डॉक्टर ,अधिकारी प्राचार्य के साथ मीटिंग में  व्यस्त हो रहे हैं। जिससे सारा काम काज भी बाधित हो रहा है।

यहां पर अगर कोई मरीज या उसके साथ तीमारदार अपनी समस्याओं एवं चिकित्सा उपचार संबंधी समस्याओं को लेकर प्राचार्य कक्ष तक पहुंचता है तो वहां जाकर पता चलता है कि प्राचार्य महोदय मीटिंग में व्यस्त है और उनके साथ संबंधित डॉक्टर भी व्यस्त है।  अपनी बीमारी से परेशान मरीज व तीमारदार की कोई सुनने वाला नहीं है।

आखिरकार ये घोर लापरवाही क्यों ?

इस दौरान  प्राचार्य  कक्ष पर  कुछ पत्रकार बंधुओ ने प्राचार्य से मिलने अपना किमती समय निकाल कर पहुंचे तो प्राचार्य ने उन्हें इंतजार करने के लिए बहार खड़ा कर दिया। और मीटिंग में व्यस्त हो गई। साथ ही  भूल गई कि पत्रकार भी मिलने के लिए इंतजार कर रहे हैं। वही, मौके पर पत्रकारों ने अपना कीमती समय बेकार करने से अच्छा वहां से बिना बताए चलने पर पर ही गनीमत समझी।

वहीं कुछ मरीज वउसके तीमारदारों ने बताया कि ऐसे दूनअस्पताल से तौबा -तौबा यहां पर ना तो प्राचार्य को मरीजों से मिलने का समय ना ही उनकी समस्या को सुनने का समय है। साथ ही ना ही डॉक्टर अधिकारियों को मरीज के उपचार की चिंता है। वहीं (JR) जेआर व नर्सिग अधिकारीयों के भरोसे मरीजो को छोड़ देते है।  इससे अच्छा प्राइवेट हॉस्पिटल में पैसा तो खर्च होता है कम से कम मरीज और तीमारदार की सुनवाई तो समय पर हो जाती है। ऐसी अधिकारियों की तानाशाही और व्यवस्था को देखकर सरकारी अस्पताल से लोग क्यों दूर भागते हैं ।  मरीज व उसके तीमारदारों को   मजबूरी या पैसे के अभाव के कारण सरकारी अस्पताल में परेशानियां व   लापरवाही का आलम झेलने के लिए मजबूर है  ?

जबकि किसी भी प्रकार की अस्पताल में विभागीय बैठक का समय ओपीडी के बाद दोपहर 3ः00 pmबजे से होनी चाहिए। जिससे मरीजों/तिमारदारो एवं अस्पताल की स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्थाओं में किसी किस्म का व्यवधान न पड़ सके! और सभी को चिकित्सा सुविधा सुचारू रूप से मिल सके। सबका काम भी चलता रहे।  लेकिन यह तो राजकीय दून मेडिकल कॉलेज में मैनेजमेंट का अभाव के चलते डॉक्टर अधिकारी व स्टाफ भी बैठको के चक्कर में तंग दिखाई पढ़ रहे है। इस अस्पताल में मैनेजमेंट का अभाव हर तरफ देखने को मिल रहा है। वही प्रचार्या द्वारा किए जा रहे प्रयासो को कैसे धरातल पर लाएगी।

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