देहरादून/उत्तराखण्ड: 30 JUNE.. 2023, खबर… राजधानी से शुक्रवार को देहरादून स्थित को सर्वे चौक स्थित आई.आर.डी.टी. सभागार में आयोजित उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा आयोजित साहित्य गौरव सम्मान समारोह तथा लोक भाषा सम्मेलन में 09 साहित्यकारों को उत्तराखण्ड गौरव सम्मान से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि सम्मानित हुये साहित्यकार अपनी साहित्यिक कृतियों से हमारी लोक भाषा का मान सम्मान बढ़ाते रहेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि आगामी वर्षों में भाषा संस्थान अपनी साहित्यिक एवं भाषाई गतिविधियों को व्यापक स्तर प्रदान करेगा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री द्वारा जिन साहित्यकारों को प्रतिष्ठित उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया उनमें संतोष कुमार निवारी को चन्द्रकुंवर बर्त्वाल पुरस्कार, श्रीमती अमृता पाण्डे को शैलेश मटियानी पुरस्कार, प्रकाश चन्द्र तिवारी को डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल पुरस्कार, दामोदर जोशी ‘देवांशु’ को भैरव दत्त धूलिया पुरस्कार, राजेन्द्र सिंह बोरा उर्फ त्रिभुवन गिरी को गुमानी पंत पुरस्कार, नरेन्द्र कठैत को भजन सिंह ‘सिंह’ पुरस्कार, महावीर रवांल्टा को गोविन्द चातक पुरस्कार, गुरूदीप को सरदार पूर्ण सिंह पुरस्कार एवं राजेश आनन्द ‘असीर’ को प्रो. उन्नवान चिश्ती पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सभी सम्मानित साहित्यकारों को अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र एवं 01 लाख की सम्मान राशि प्रदान की गई।
वही इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ऐसे आयोजनों से प्रदेश में स्थानीय भाषाओं के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली बोलियों व उनमें रचे जा रहे साहित्य को भी प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने कहा कि देश के अनेक साहित्यकारों ने हिन्दी को विश्व पटल पर स्थापित करने में महान योगदान दिया है। हिंदी एक उदार, ग्रहणशील और सहिष्णु भाषा तो है ही, ये भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका भी है। यह हमारी परंपराओं और हमारी विरासत का बोध कराने वाला एक सतत अनुष्ठान है।
वही इस मौके पर सीएम ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिन्दी का विकास किसी अन्य भाषा या बोली की कीमत पर नहीं हो रहा है बल्कि आज भारत की सारी भाषाएं एक साथ आगे बढ़ रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बच्चों को शुरूआती शिक्षा मातृभाषा में देने का प्राविधान किया गया है। इससे यह उम्मीद जगती हैं कि उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय प्रदेश में हिन्दी के साथ-साथ गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी आदि बोलियों का भी विकास होगा। हमारे यहां गढ़वाली, कुमाउनी और जौनसारी बोलियां बोली जाती है परन्तु हमारे प्रदेश का हिन्दी के साथ गहरा लगाव है। उन्होंने इसे सुखद संयोग बताया कि साहित्य गौरव सम्मान पाने वाले साहित्यकारों में वे साहित्यकार भी शामिल हैं जो अनेक विशिष्ट बोलियों में रचना कर्म कर रहे हैं।
साथ ही उन्होनें ने कहा कि जो समाज अपनी भाषा और बोलियों का सम्मान नहीं करता वह अपनी प्रतिष्ठा गवां देता है। अपनी भाषा व बोलियों को बचाने और उन्हें बढ़ाने के कार्य में आम लोगों की व्यापक सहभागिता की जरूरत है। उन्होनें ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से लोक भाषाओं पर विद्वान साहित्यकारों के मध्य विचार-विमर्श किया जाएगा। जिससे हिंदी व अन्य लोक भाषाओं का संरक्षण, विकास और उत्थान हो सके। यहां प्राप्त साहित्यकारों के महत्वपूर्ण सुझावों को संस्थान अपनी भविष्य की कार्ययोजना में अवश्य सम्मिलित करेगा।
वही सीएम ने कहा कि उत्तराखण्ड शैक्षिक व सांस्कृतिक रूप से प्रबुद्ध लोगों की भूमि है इसी के अनुरूप हमारे भाषा संस्थान की पहचान भी पूरे देश में होनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र द्वारा उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता कानून बनाये जाने की दिशा में राज्य सरकार के सकारात्मक प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तराखण्ड सम्पूर्ण देश को शुद्ध जल, हवा व पर्यावरण प्रदान करने वाला प्रदेश है। यह ऋषियों मुनियों, तपस्वियों, महान साहित्यकारों व प्रबुद्धजनों की भूमि रही है। ऋषियों मुनियों द्वारा मंत्रो व ऋचाओं के जो शब्द यहां रचे गये वे कभी समाप्त नहीं होते। उन्ही की ऊर्जा का प्रतिफल है कि हमने इस दिशा में पहल की है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि समान नागरिक संहिता के लिये हमने 12 फरवरी, 2022 को जनता से वादा किया था कि हम समान नागरिक संहिता लायेंगे। उत्तराखण्ड देवभूमि है, गंगा-यमुना का प्रदेश है, वनों पर्वतों से आच्छादित है। दो-दो अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगा है। धर्म, अध्यात्म एवं संस्कृति का केन्द्र है। राज्य में कोई भी किसी पंथ, समुदाय, धर्म, जाति का हो सबके लिये एक समान कानून हो, इसके प्रयास किये गये है। समान नागरिक संहिता लागू करने के लिये गठित समिति द्वारा डेढ़ साल में 02 लाख से भी ज्यादा लोगों के सुझाव, विचार लिये। साथ ही उन्होनें ने सभी संगठनों, संस्थाओं, स्टेट होल्डरों से वार्ताकर इसका ड्राफ्ट लगभग तैयार किया जा रहा है। हमें जैसे ही यह ड्राफ्ट मिलेगा उसे देवभूमि में लागू करने का कार्य करेंगे। देश में एक विधान एक निशान एक प्रधान के साथ एक कानून की दिशा में हम आगे बढेंगे। इस दिशा में देश के अन्य राज्य भी आगे आयेंगे।
इस अवसर पर भाषा विभाग के मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि साहित्य सृजन, समृद्ध लोक संस्कृति उत्तराखण्ड की परम्परा है। इस धरती ने साहित्यकारों को साहित्य सृजन की प्रेरणा देने का कार्य किया है। यहां का शांत एवं आध्यात्मिक वातावरण साहित्य एवं शिक्षा के लिये अनुकूल रहा है। राज्य में लोक भाषाओं को बढावा देने के लिये स्कूलों में इसे अनिवार्य किया गया है। उन्होंने कहा कि बढ़ते शहरीकरण के इस दौर में लोगों को अपनी मातृभाषा के प्रति लगाव कुछ कम हुआ है। इसमें इस लगाव को बढावा देने के प्रयास करने होंगे। यह हम सभी के सामूहिक प्रयासों से ही संभव हो सकेगा।
अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि भाषा के कारण ही हमारा अस्तित्व है। भाषा का हमारे जीवन में दखल रहता है।जीवन का स्पंदन है भाषा। प्रो. मिश्र ने उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता कानून बनाए जाने के लिये मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के प्रयासों की सराहना करते हुये इसे सबको साथ लेकर चलने की पहल बताया।
साहित्यकार एवं पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री अनिल रतूड़ी ने इस अवसर पर भाषा साहित्य एवं संस्कृति के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं पर विचार व्यक्त करते हुये कहा कि शब्द को ब्रह्म तथा ओम् शब्द को सृष्टि के अन्धकार दूर करने वाला बताया गया है। शब्द से ही साहित्य और भाषा का विकास हुआ है। मनुष्य और जीवों में शब्द का ही अंतर है। मनुष्य अकेली प्रजाति है जो कल्पना कर सकती है।
उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की निदेशक श्रीमती स्वाति एस. भदौरिया ने कहा कि उत्तराखंड भाषा संस्थान राज्य सरकार का एक ऐसा प्रयास है जिसके माध्यम से उत्तराखंड में भाषाओं के संरक्षण, उनके विस्तार और प्रोत्साहन संबंधी कार्यों को संपादित किया जा रहा है। इस अवसर पर विधायक खजान दास ने भी अपने विचार रखे। वही इस कार्यक्रम में विधायक मोहन सिंह बिष्ट, प्रमोद नैनवाल, सचिव भाषा विनोद प्रसाद रतूड़ी सहित बडी संख्या में साहित्यकार एवं गणमान्य लोग उपस्थित थे। संचालन साहित्यकार गणेश खुगशाल गणी ने किया।