पितृपक्ष में कौअे, कुत्ते, गाय को ही खिलाया जाए यही उत्तम होता हैं !

देहरादून/उत्तराखण्ड: 9 Oct.–2023:  सोमवार को  पितृपक्ष में पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध में कौए, कुत्ते, गाय आदि के लिए आखिर क्यों विशेष रूप से भोग निकाला जाता है, जानें इसका धार्मिक महत्व.है।  सनातन परंपरा   के अनुसार पितृपक्ष में लोग अपने पितरों का पिंड दान करते हैं।  पितृ पक्ष का प्रारंभ 29 सितंबर 2023, से हो चुका हे. आज 5 अक्टूबर  को सप्तमी तिथि का श्राद्ध है।  भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष चलता है, इसकी 16 तिथियों पर श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि किया जाता है!  पितृ पक्ष की 16 तिथियों पर श्राद्ध करने के क्या पुण्य फल मिलते हैं?उनकी आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मण भोज करवाते हैं। पितृपक्ष में कौए का बेहद महत्व है।  भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या का समय पितरों की पूजा, श्राद्ध एवं तर्पण आदि के लिए बहुत ज्यादा फलदायी माना गया है।  अंतिम दिन 14 अक्टूबर 2023, अमावस्या श्राद्ध है। जिसमें पितृ को विदाई होगी।

वही जिसमें  सनातन परंपरा में  कौआ यमराज का प्रतीक होता है।  माना जाता है कि कौवे इस समय में हमारे पितरों का रूप धारण करके हमारे पास रहते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौअे को खाना खिलाने से यमलोक में पितर देवताओं को तृप्ति मिलती है। इस लिए कौअे को ही खिलाया जाए यही उत्तम होता हैं। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यम ने कौवे को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। तब से यह प्रथा चली आ रही है।

सनातन परंपरा में   पितृपक्ष में यदि कोई व्यक्ति श्रद्धा के साथ अपने परिवार से जुड़े किसी दिवंगत व्यक्ति का श्राद्ध करता है तो उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं. अपने पूर्वज या फिर कहें पितरों की याद में किए जाने वाले श्राद्ध में किसी ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबलि या फिर कहें पंच ग्रास का बहुत ज्यादा महत्व होता है।

आइए जानते हैं कि आखिर कौए, कुत्ते, चीटीं, गाय आदि के लिए आखिर क्यों निकाला जाता है ग्रास और इसका हमारे पितरों से क्या संबंध होता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि यदि पितृपक्ष में घर के आंगन में कौआ आकर बैठ जाएं तो यह बेहद शुभ होता है। अगर कौआ दिया हुआ भोजन खा लें तो अत्यंत लाभकारी होता है। इसका मतलब है कि पितृ आपसे प्रसन्न हैं और आशीर्वाद देकर गए हैं।उ नकी आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मण भोज करवाते हैं।

इस दौरान पितृ पक्ष में आप कुत्ते और गाय को भी खाना खिला सकते हैं। इसके अलावा पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने का विशेष महत्व है। पीपल को पितृ का प्रतीक माना गया है।पितृपक्ष में श्राद्ध करते समय गाय और कौए की तरह कुत्ते के लिए भी विशेष रूप से भोग लगाया जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरा भोग लगाते समय पांचवा हिस्सा चींटी आदि अन्य कीड़े-मकोड़ाें को दिया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने पर पितरों को तृप्ति मिलती है। और वे प्रसन्न होकर वंश की वृद्धि करते हैं।(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है)

Leave A Reply

Your email address will not be published.