उदन्त मार्तण्ड’: कैसे उगा हिंदी पत्रकारिता का ‘सूरज’ ?,अब के दौर की मीडिया! (आईये जाने) !

देहरादून/उत्तराखण्ड: 30 MAY.. 2023, खबर… राजधानी से मंगलवार को 30 मई 1826 में  हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में  खास महत्व है। वही इस अवसर पर हिंदी पत्रकारिता दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मई को मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 को भी देशभर के पत्रकार संगठनो एवं पत्रिकारिता से जुड़े लोगो ने हिंदी पत्रकारिता दिवस का आयोजन कर उत्साह पूर्वक मनाया

वही जिसमें  अब तो अधिकतर समाचार पत्र के नाम से लोग पहचानते हैं कि कौन-किस पार्टी की ओर झुकाव रखता है। समाचार पत्र उठाएंगे तो विज्ञापन बड़े और खबरें छोटी नजर आयेंगी। राष्ट्रीय महत्व और जन सरोकार की खबरों से ज्यादा सनसनीखेज खबरों को महत्व दिखेगा और संपादकीय पृष्ठ की गरिमा का तो अब बहुत ही कम ख्याल देखने को मिलता है। कई समाचार पत्रों ने तो हिंग्लिश को मान्यता देकर हिंदी भाषा को गहरी ठेस भी पहुँचाई है।   और अब के इस दौर में समाचार और विश्लेषण निष्पक्ष से पक्षकार होते चले गये।

इसी के साथ बता दे कि देश में 90 के दशक में जब इलेक्ट्रानिक मीडिया तेजी से उभर रहा था तो हिंदी पत्रकारिता को एक नयी दिशा मिली। कई वरिष्ठ पत्रकारों ने टीवी का रुख किया और कुछ ने पश्चिम की शैली का अनुसरण किया तो कुछ ने अपनी नयी शैली विकसित करते हुए टीवी पर हिंदी भाषा में खबरों को प्रस्तुत कर नया मंच खड़ा कर दिया। लेकिन धीरे-धीरे टीवी समाचारों पर व्यावसायिकता हावी होने लगी और समाचार चैनल ‘इशारों पर’ एजेंडा सेट करके चलाने लगे। वही इसी के साथ आज तो ऐसी स्थिति  है कि चाहे कोई सबसे तेज खबर देने वाला चैनल हो या सबसे ज्यादा खबर देने वाला चैनल सभी किसी ना किसी की ओर झुकाव रखते ही हैं।

बता दे कि अब बात डिजिटल मीडिया की करें तो यह सही है कि यह सबसे बाद में आया लेकिन सबसे पहले आये समाचार पत्र, उसके बाद आये टीवी चैनल भी डिजिटल मीडिया मंच पर उपस्थित होने को मजबूर हुए क्योंकि यही वह माध्यम है जो बिजली की गति से दौड़ता हुआ समाचारों को पल भर में दुनिया के हर कोने तक पहुँचा सकता है।

इसी के साथ  डिजिटल मीडिया पर प्रकाशित समाचारों को संकलित करने के लिए उन्हें फाइलों में लगा कर रखने या उनकी वीडियो क्लिप संभाल कर रखने की जरूरत नहीं है क्योंकि इंटरनेट के विशाल संसार में कुछ भी, कभी भी और कहीं भी खोजा जा सकता है और उसको आगे भेजा जा सकता है। साथ ही डिजिटल मीडिया कमाई का एक बड़ा जरिया भी बन गया तो बहुत से लोग इस क्षेत्र में आ गये। डिजिटल मीडिया का क्षेत्र आज बहुत व्यापक हो गया है लेकिन अगर विश्वसनीयता के पैमाने पर आंका जाये तो डिजिटल मीडिया पर ही सबसे ज्यादा सवाल उठते हैं।

जाने 30 मई 1826 में  हिंदी पत्रकारिता के इतिहास:

बता दे कि, इसी दिन वर्ष 1826 को पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने पहले हिंदी अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन किया था।  उस दौरान अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे, लेकिन हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए 30 मई को ‘उदन्त मार्तण्ड‘ साप्ताहिक अखबार का प्रकाशन शुरू किया गया। ‘उदन्त मार्तण्ड’ एक साहसिक प्रयोग था।

 उत्तर प्रदेश के मूल रूप से कानपुर के रहने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता (अब कोलकाता) से एक साप्ताहिक अखबार के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वह खुद थे। यह अखबार हर हफ्ते मंगलवार को ‘उदन्त मार्तण्ड’ के पहले अंक की 500 प्रतियां छपीं पाठकों तक पहुंचता था। यही कारण है कि 30 मई को हर साल हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कोलकाता शहर को अपनी कर्मभूमि बनाया। एक अच्छे वकील होने के साथ-साथ पत्रकार संपादक और प्रकाशक भी बन गए। उस समय देश की राजधानी कोलकाता में थी।

 प्राप्त जानकारी के अनुसार  जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर  ‘उदन्त मार्तण्ड‘ साप्ताहिक अखबार का प्रकाशन शुरू किया ।  इसी के साथ प्रकाशक और संपादक पंडित जुगल किशोर को हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। इसके अलावा हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज्यादा होने की वजह से इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था।

साथ ही   पैसों की तंगी की वजह से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसम्बर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया।  उस समय अखबार की दुनिया में अंग्रेजी बंगला और उर्दू का काफी प्रभाव था। अधिकांश अखबार इन्हीं भाषाओं में छपते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।

इस दौरान देश की आजादी से लेकर, साधारण आदमी के अधि‍कारों की लड़ाई तक, हिंदी भाषा की कलम से इंसाफ की लड़ाई लड़ी गई। वक्त बदलता रहा और पत्रकारिता के मायने और उद्देश्य भी बदलते रहे, लेकिन हिंदी भाषा से जुड़ी पत्रकारिता में लोगों की दिलचस्पी कम नहीं हुई, क्योंकि इसकी एक खासियत यह भी रही है कि इस क्षेत्र में हिंदी के बड़े लेखक, कवि और विचारक भी आए।  बता दे कि  19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में हिंदी के अनेक दैनिक समाचार पत्र निकले जिनमें हिन्दुस्तान, भारतोदय, भारतमित्र, भारत जीवन, अभ्युदय, विश्वमित्र, आज, प्रताप, विजय, अर्जुन आदि प्रमुख हैं। 20वीं शताब्दी के चौथे-पांचवे दशकों में अमर उजाला, आर्यावर्त, नवभारत टाइम्स, नई दुनिया, जागरण, पंजाब केसरी, नव भारत आदि प्रमुख हिंदी दैनिक समाचार पत्र सामने आए।

इस दौरान पत्रकारिता में क्रांतिकारिता का रंग गणेश शंकर विद्यार्थी ने भरा था। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 9 नवंबर 1913 को 16 पृष्ठ का ‘प्रताप’ समाचार पत्र शुरू किया था। यह काम शिव नारायण मिश्र, गणेश शंकर विद्यार्थी, नारायण प्रसाद अरोड़ा और कोरोनेशन प्रेस के मालिक यशोदा नंदन ने मिलकर किया था। चारों ने इसके लिए सौ-सौ रुपये की पूंजी लगाई थी।

 

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